थारु बिशेष “पैसा” बनल्की दुनिया के पैसा.। पैसा रुप छ एते कैसा पैसा फेक तमैसा देख । पैसा बिना दुखके रेख ।। पैसा छु जन त दुनिया देश । नै छु अगर त भाषा नि भेष पैसासे जुवा ,तास हे चेस । यति नै छो त बच्तो नै नोहकेश ।। पैसासे साथीसङ्गी आगु पाछु । पार्टी घुमघाम जिन्दगी नाचु ।। कह्छी छुच्छाके एते के पुच्छा पैसा हर चिज लाग्छी अच्छा । पैसा छेकी बडखी नशा । पैसा छेकी दोस्त अच्छा ।। पैसासे मिल्तु प्यारके भाषा । पैसा छेकी बिस्वास आशा । पैसासे भोर्छी पेटमे अन्न । गरिबके जरिके धनजन ।। धनिखाके घरमे टनाटन । दिनदुखियाके कान्छी मन ।। पैसासे मोज एस अराम । बेसहरा जिवनमे पुर्णबिराम ।। पैसा जेछी कर्ल काम हराम । जकरा नै त फुट्ल रहछी करम ।। सेहयासे …. एकदम खाच जिङ्गिमे पैसा । पैसा हि छेकी जिवनके आशा बिना पैसाके जिन्दगी तमाशा । जिन्दगी बन्छि कना नि हसा ।। भेट्तु नै कथौ दुनियामे बशा । बुझ्तु नै कोइ तोर बोल्ल भषा कर्तु नै कोइ तोरमे भरोस मसा छिरछिर दुरदुर हेतु कर्तु गोसा ।। जरुरी छेकी जिङीके अङ्ग । पैसासे फिर्छी जिङीके रङ्ग ।। पैसासे नयाँ नयाँ काम फम । पैसासे छेकी मानुसके दम ।। वेहयासे कमवै त जोगावे लगान सिख । नहाक त माङे पर्तु भिख ।। कर्तु सवकान दिक सिक । कहछुन राख सवका इख ।। साहित्य प्रेमि राज “संघर्ष “ “पैसा” बनल्की दुनिया के पैसा.। पैसा रुप छ एते कैसा पैसा फेक तमैसा देख । पैसा बिना दुखके रेख ।।…
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