७।साउन।

हास्वै कि कान्वै बिततु तब जान्वै,
दहेज आखिर युवासव काम माङ्वै कुन बग हेलिस,
सन्सार के रित,
सवकै मनेमने कर्छी बिना सुरतालके गीत,।
गुन गुनावे मन लाग्छी थारु सव के गीत,
बनावे मन लाग्छी,एखातरा जनचेतनाके गीत,।।
दैय बहिन के देखछिन,
खाली छि सिथ, बाप भ्यासव हदिय छि,
देखिके समाजके इख,।
कर कुटुम्भ एछी माङ्ग्छी दानदहेज बेसि,
कखरु त सुखना पान घुरयाके देछी ठेसि,।।
थारु समाजके एहयाना, नैय बनिहया रित,
कखरु छि त,
कखरु नैय छि,किरेङ्गके हेते ठिक,
बेटी हो बच्चा के सम्मान हक दिलावम तवे हेते ठिक,
थारु समाजमे जनचेतना दिलावम मत छिटम बिख,।।
माङ्गी चाङ्गिके कोइ भोर्छे, आपन बेटीके सिथ,
भ्या बापके ऋणदाताके ऋण तिर्ते हेछे जिन्दगी ठिक,
थारु वे खवास समाजके इना नैय असल रित,
एहयाना समाजके बिकृतीसे कोइ खयालेछो, बिख,।।
थारु युवा साहित्यकार सुरेश चौधरी मोरङ ग्रामथान, दहेज बिरोधी युवायुवती सवके हृदय दिलसे सम्मान ,